दर्द कभी इतना बढ़ जाता है कि शब्दों की दहलीज़ लांघ जाता है
कहना भी चाहें तो होठ हिलते तो हैं मगर कहते कुछ और हैं
अंधेरों से निकलती हूँ कुछ पल के लिए फिर तुम वहीं छोड़ आते हो
दर्द कभी इतना बढ़ जाता है कि शब्दों की दहलीज़ लांघ जाता है
कहना भी चाहें तो होठ हिलते तो हैं मगर कहते कुछ और हैं
अंधेरों से निकलती हूँ कुछ पल के लिए फिर तुम वहीं छोड़ आते हो