हम कितना भी पीछा छुड़ाए
ये हैं कि हर बार सामने चले आते हैं
क्या करें फिर मोह लेते हैं मोरे गोविंदेव
पर बस यही और कोई मूरत तिहारी
न भाये कान्हा
हम कितना भी पीछा छुड़ाए
ये हैं कि हर बार सामने चले आते हैं
क्या करें फिर मोह लेते हैं मोरे गोविंदेव
पर बस यही और कोई मूरत तिहारी
न भाये कान्हा