कभी अपने खुले हुए सपनों के झरोखे से बाहर की दुनिया देखनी चाहिए

अक्सर होता यूं है कि हम किसी उम्मीद में रहते हैं ता-उम्र, बाहर नजारा बदल जाता है

एहसास जबतक हो, सारा का सारा मंजर अंजाना हो जाता है

फिर छले हुए एहसासों और बिफरते हुए जज्बातों के टोकरे का बोझ दिल पे लिए फिरना होता है

ऐसे में अक्सर साथ साया भी नहीं चलता है दोस्त ऐहबाबों की बात क्या किजिये

जिसे अबतक अपना समझे थे,भीड़ में सबसे पहले छुड़ा कर हाथ वही छिप जाता है

चेहरे पे चेहरा सजा कर रखते हैं लोग, नज़र चूके तो अक्सर नक़ाब वो गिर जाता है

ख्वाबों को असल जामा पहनायें तो अच्छा है वरना ग़ुर्बत में तो सभी हैं

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