लाल गुलाब पे पड़ी ओस की बूंदों में
अक्स तुम्हारा इस कदर लुभाता है
मैं समा जाऊँ तुम मे और भूलूं संसार
तुम जो मुस्कुरा दो
रुहानी हो जाये समां
तुम पर करदूं जां निसार
आओ कभी महफिल में मेरी
बिछ जाऊँ कदमों तले
बन शमा फिर जलूं
लाल गुलाब पे पड़ी ओस की बूंदों में
अक्स तुम्हारा इस कदर लुभाता है
मैं समा जाऊँ तुम मे और भूलूं संसार
तुम जो मुस्कुरा दो
रुहानी हो जाये समां
तुम पर करदूं जां निसार
आओ कभी महफिल में मेरी
बिछ जाऊँ कदमों तले
बन शमा फिर जलूं